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जलालुद्दीन खिलजी, जिन्हें फिरोज़ शाह खिलजी के नाम से भी जाना जाता है, वो दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक अहम शख्सियत थे। 1220 के आसपास पैदा हुए, उनकी शुरुआती ज़िन्दगी के बारे में ज़्यादा कुछ पता नहीं चलता। 15वीं सदी की किताब, “तारीख-ए-मुबारक शाही” में, यहीं बिन अहमद सरहिंदी ने लिखा है कि उनके पिता का नाम “बुग़रूश” था, जिसे कुछ इतिहासकार “युग़रूश” की गलत पढ़ाई मानते हैं। [1]

जलालुद्दीन की ताकत मशहूर ममलुक वंश के अंदर ही बढ़ी। वो रैंकों के ऊपर चढ़ते हुए सुल्तान मुइज़ुद्दीन क़ैक़ूबाद के राज में एक बड़े अफसर बन गए। लेकिन, 13वीं सदी के आखिर में क़ैक़ूबाद को लकवा मार गया, जिससे सत्ता का झगड़ा शुरू हो गया। रईसों ने क़ैक़ूबाद के नाबालिक बेटे, शम्सुद्दीन कयूमर्स को नया सुल्तान बना दिया। इस बात से जलालुद्दीन की पोजीशन को खतरा हुआ और 14वीं सदी के लेखक बरनी ने अपनी किताब “तारीख-ए-फ़िरोज़ शाही” में लिखा है कि जाललुद्दीन ने उन सबको रास्ते से हटा दिया जो गद्दी के दावेदार थे। इस तरह 1290 में वो खुद दिल्ली के सिंहासन पर बैठ गए। [2]

1290 से 1296 तक चले उनके राज में जलालुद्दीन ने अपनी हुकूमत को मजबूत करने की कोशिश की। उन्हें डर था कि दिल्ली में पहले से मौजूद तुर्क खानदान उनका विरोध कर सकते हैं, इसलिए उन्होंने शुरुआत में राजधानी के बाहर, किलोखड़ी नामक जगह से हुकूमत चलाई। [3] लेकिन उनकी कोशिशों के बावजूद, उनके खिलाफ बगावतें हुईं, खासकर उन लोगों से जो उन्हें गद्दी छीनने वाला मानते थे। मगर, जैसा कि इतिहासकार इसामी ने अपने ग्रंथ “फुतूह-उस-सलातिन” में लिखा है, जलालुद्दीन ने अपने से पहले के सुल्तानों की तरह सख्ती नहीं दिखाई। उन्होंने बागियों के साथ नरमी का व्यवहार किया, सिवाय सिदी मौला जैसे कुछ लोगों के जिन्हें वो एक बड़ा खतरा मानते थे। [4]

जलालुद्दीन के शासनकाल में मंगोलों ने भी हमला किया था। मंगोल शासक हुलागु खान के दौर में वो बातचीत करके किसी बड़े युद्ध को टालने में कामयाब रहे। मगर, उनके शासन में ही उलुग खान के मातहत एक और मंगोल हमला हुआ। इस बार उन्हें और ज़्यादा झुकना पड़ा, खबरों के मुताबिक जलालुद्दीन ने मंगोल सरदार को मुसलमान बनने और अपनी बेटी से उसका निकाह करने की भी रज़ामंदी दे दी।

चुंकि उनका राज बहुत लंबा नहीं चला, फिर भी जलालुद्दीन खिलजी ने खिलजी वंश को खड़ा करने में अहम रोल किया है।

By admin

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